World’s Oldest Female Sharpshooter | शूटर दादियां

You must have heard about Sharpshooter. It is amazing to hear Women sharpshooter. But it is almost unbelievable to see Oldest female sharpshooter.  Old woman like Grandmother women can be a sharpshooter! Grandmother duo aged 82 and 77 respectively are wielding guns instead of walking sticks. They faced criticism and were belittled by society for pursuing their passion for shooting at such a ripe age! Watch their story of struggle & hardships culminating in medals & accolades!

शूटर दादियाँ!

मिलेगी मुझे मंज़िल मेरा मन कहता है जीत जाऊँगी मैं, ज़िंदगी में भरा हर रंग कहता है। ज़िंदगी में अपनी मिसाल बन जाऊँगी अपने लिए ही नहीं, दूसरों के लिए भी कुछ कर जाऊँगी।

ज़िला बागपत के छोटे से गांव जोहड़ी की 82 वर्षीय दादी चंद्रो तोमर और 77 वर्षीय दादी प्रकाशो देश ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में अपने निशानेबाज़ी की वजह से विख्यात हैं। शूटिंग में इनका जवाब नहीं। बुढापे में जब रिटायर हो जाते हैं उस उम्र में इन्होंने शूटिंग का अभ्यास शुरु किया और पिछले सत्रह वर्षों में पच्चीस से ज्यादा राष्ट्रीय चैंपियनशिप का खिताब अपने नाम किया।

प्रेरणा बन चुकी हैं दादियां

दूसरों के लिए प्रेरणा बन चुकी इन दादियों को इस मुकाम तक पहुंचने के लिए खाशी मशक्कत करनी पड़ी, शुरुआती दौर में शूटिंग के अभ्यास के दौरान इन्हें अपनों, गांव और समाज के ताने भी खूब सुनने पड़े, लोगों ने इनका खूब मज़ाक उड़ाया। पर आज ये देश की शान हैं। महिला सशक्तिकरण का जबर्दस्त मिसाल हैं।

उम्र के जिस पड़ाव पर लोगों की नज़रें धुंधली पड़ जाती हैं, हाथ कांपने लगते हैं, पांव डगमगाने लगते हैं और जिस्म से जान फुर्र होने की फिराक में रहती है उस उम्र में ये दादियां ये कारनामा कर रही हैं। नज़र इतनी तेज़ कि आपकी नज़रों को भरोसा नहीं होगा, निशाना इतना सटीक कि आप कहेंगे भला ऐसा होता है क्या!!!!

शूटर दादियाँ
शूटर दादियाँ

25 बार नेशनल चैम्पियन रही हैं शूटर दादियां

दादी चंद्रो तोमर और दादी प्रकाशो तोमर रिश्ते में जेठानी-देवरानी हैं। दोनों दुनिया की सबसे ज़्यादा उम्र दराज महिला शूटर हैं। दोनों ने करीब सत्रह साल पहले शूटिंग में हाथ आजमाना शुरु किया। फिर क्या था,देखते ही देखते इन दोनों ने वो कर दिखाया जो कोई भी उम्र के इस पड़ाव पर करने की सोच भी नहीं सकता। शूटिंग में दोनों पच्चीस बार से ज्यादा नैशनल चैंपियन रह चुकी हैं। दोनों दादियां शूटिंग में महारथ हासिल करने के लिए घर और समाज से छुप-छुप कर हाथों को बैलेंस करने का देसी तरीका आजमातीं। फिर हर दिन शूटिंग रेंज में जाकर जमकर अभ्यास करतीं। ये देख गांव-समाज के लोग दादियों का खूब मजाक उड़ाते। ताने मारते और फब्तियां कसते। लेकिन दादियों ने भी ठान ली थी कि लोगों की बातों से प्रभावित हुए बिना वो शूटिंग में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा कर रहेंगी

दादियों का निशाना देखकर स्तब्ध रह जाते हैं लोग

अहले सुबह उठ कर घर का काम-काज निपटना, फिर दिन में शूटिंग रेंज में प्रैक्टिस करना और रात को घर वालों को खाना खिलाने के बाद देर रात तक जागना, हाथों में पानी से भरा जग लेकर हाथों की स्थिरता के लिए अभ्यास करना दादियों की दिनचर्या में शामिल हो गया। दादियों की मेहनत ने रंग लाना शुरु किया। राज्य स्तर फिर देश स्तर की शूटिंग प्रतियोगिताओं में दादियों के शूटिंग का जलवा छाने लगा। दादियों का अचूक निशाना देख कर लोग स्तब्ध रहते और फिर क्या था, जो लोग कभी दादियों का मजाक उड़ाते वही उनके सम्मान में पलक पावड़े बिछाने लगे। मीडिया, टीवी, लाइव शो सब जगह दादियां छाने लगीं। राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर दोनों दादियों को सम्मानित किया जाने लगा। दूसरे राज्यों के कई शूटर रेंज में बतौर प्रशिक्षक उन्हें आमंत्रित किया जाने लगा। दोनों दादियां आज देश की शान हैं। बच्चों को निशानेबाजी का गुर सिखाती हैं और हर बार निशाना सटीक लगाती हैं। हर बार उनकी निशानेबाज़ी देखकर लोग बस यही कहते हैं वाह! ये वाकई कमाल है!

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