कोरोना की मार : WhatsUpNeurology की धार! (Well Done डॉ पीके सेठी)

वाट्सएप न्यूरोलॉजी…मतलब न्यूरोलॉजी से जुड़ी बीमारी का वाट्सएप के जरिए Treatment या इलाज। हम कोई मजाक नहीं कर रहे। न ही ह्वाट्स एप यूनिवर्सिटी जैसा कोई term टॉस कर रहे हैं जो झूठी बातों को तवज्जो नहीं देने के लिए होता है।

ह्वाट्स एप न्यूरोलॉजी मेडिकल की दुनिया में एक बड़ी सच्चाई है। एक ऐसी सच्चाई जो न्यूरोलॉजी स्पेशलिस्ट तक नहीं पहुंच जाने की वजह से ख़तरे में पड़े मरीजों की जान बचाने का तरीका बन चुका है। खासकर इन दिनों जब कोरोना वायरस ने दुनिया को दहला रखा है, अस्पताल तक मरीजों का पहुंचना और मरीज तक डॉक्टरों का पहुंचना मुश्किल होने लगा है तो ऐसे में ह्वाट्स एप न्यूरोलॉजी मेडिकल की दुनिया में रोशनी दिखाता नज़र आता है।

ह्वाट्सएप पर मेडिकल रिपोर्ट मंगाने वाले, एडवाइस लिखने-बताने वाले डॉक्टर तो कई मिल जाएंगे, लेकिन ह्वाट्स एप न्यूरोलॉजी को पोपुलर और यूजफुल बनाने का पूरा सिस्टम डेवपल करने वाले हिन्दुस्तान के इकलौते डॉक्टर हैं पद्मश्री डॉक्टर कर्नल प्रह्लाद कुमार सेठी, जिन्हें दुनिया डॉ पीके सेठी के नाम से जानती है।

डॉ पीके सेठी को 2002 में पद्मश्री के सम्मान से नवाजा गया था। वे नयी दिल्ली के सर गंगा राम हॉस्पिटल में डिपार्टमेंट ऑफ न्यूरोलॉजी के एक्स चेयरमेन हैं और अब भी यहां एडवाइजर के तौर पर सेवा दे रहे हैं।

मेडिकल में डॉ सेठी का योगदान इस बात से समझा जा सकता है कि उन्होंने न्यूरोलॉजी में जिस सिन्ड्रॉम को इजाद किया है उसे उनके ही नाम से सेठीज कॉमा सिंड्रोम के तौर पर दुनिया जानती है। सिटी स्कैन के क्षेत्र में भी उन्होंने नयी थ्योरी रखी जिसे अपीयरिंग एंड डिस अपीयरिंग रीजन विद एपिलेक्स सिटी स्कैन कहते हैं जिसे आजकल न्यूरोसिस सरकोसिस के नाम से जाना जाता है। 80 से ज्यादा मेडिकल रिसर्च पेपर लिख चुके हैं डॉ पीके सेठी। मगर, वाट्सएप न्यूरोल़ॉजी कैसे लेकर आए डॉ सेठी, कैसे उनके मन में आयी बात…यह हम आपको बताते हैं..

शनिवार का दिन था। मोबाइल की लगातार बजती घंटी से परेशान हो गये डॉ पीके सेठी। फोन उठाया तो पता चला कि हलद्वानी से कोई व्यक्ति था जिसके पिता का इलाज वे कर चुके थे, अब माता को जरूरत थी। उसने बताया कि वाट्सएप पर एमआरआई, सिटी स्कैन की रिपोर्ट भेजी है। डॉ सेठी ने बताया कि खून सिर में फैल चुका है। तुरंत ऑपरेशन जरूरी है। दिल्ली लाने में खतरा है। ब्लड की वजह से सिर में दबाव बढ़ता जा रहा है। स्थानीय अस्पताल में ही ऑपरेशन का सुझाव दिया। कुछ दिनों बाद वही व्यक्ति अपनी मां को स्वस्थ हाल में उनके पास लेकर आया और पूरी रिपोर्ट देखकर एक बार जांच करने को कहा।

बस इसी घटना ने डॉ पीके सेठी के मन में ह्वाट्सएप न्यूरोलॉजी का ख्याल पका दिया। डॉ सेठी सुदूर गांव-देहात में नहीं पहुंच सकते, लेकिन ह्वाट्स एप उन्हें जरूरतमंद मरीजों तक पहुंचा सकता है। हलद्वानी के मरीज की तरह दूसरे भी लाभान्वित हो सकते हैं।

एक डॉक्टर तक मरीज आता है…डॉक्टर पीके सेठी ने इस प्रचलन को बदलने की ठान ली। अब डॉक्टर मरीज तक पहुंचेगा। मोबाइल फोन के माध्यम से, इंटरनेट के माध्यम से ऐसा करना अब आसान है। डॉ सेठी अपने मिशन में सफल होते दिख रहे हैं। ब्रेन केयर फाउन्डेशन नाम से उन्होंने वेबसाइट भी बना रखी है। खुद उनके नाम से भी वेबसाइट है। इसी तरह से whatsup.com नाम से भी उनकी वेबसाइट है जो ह्वाट्स एप न्यूरोलॉजी में मददगार है। इन वेबसाइट के जरिए डॉ सेठी ने न सिर्फ मरीजों से संपर्क मजबूत किया है बल्कि उन्होंने देशवासियों को अपने से जोड़ा है जो संभावित मरीज हो सकते हैं।

डॉ सेठी मानते हैं कि मरीज के नजदीक मौजूद डॉक्टर और हॉस्पिटल सबसे महत्वपूर्ण होता है। मगर, सेकेंड ओपिनियन हर मरीज का अधिकार होता है। ह्वाट्स एप न्यूरोलॉजी सेकंड ओपिनियन की शानदार पैरवी करता है। डॉ सेठी सेकेंड ओपिनियन नाम से किताब भी लिख चुके हैं। वे इसके तमाम फायदे बताते हैं।

सेना में कर्नल भी रह चुके हैं डॉ सेठी। बॉर्डर पर दुश्मनों को जानलेवा गोली और घायलों को दवा की गोलियां खिला चुके हैं डॉ सेठी।

डॉ सेठी ने बॉडीज़ दोनों जगहों पर देखी हैं…चाहे वह युद्ध का मैदान हो या फिर अस्पताल। उन्हें अफसोस होता है कि देश के लिए मर-मिटने का जो जज्बा लेकर सेना के जवान युद्ध के मैदान में ख़ून बहाते हैं उसकी कल्पना आम लोग नहीं कर पाते। इसलिए डॉ पीके सेठी राय रखते हैं कि हर नागरिक को अपने जीवन के कुछ साल सेना में जरूर बिताने चाहिए।

डॉ सेठी के इस जज्बे को भी सलाम है। एक डॉक्टर, एक रिसर्चर, एक प्रॉफेसर और एक रिटायर्ड सैनिक अफसर…डॉ सेठी का परिचय खत्म होने का नाम नहीं लेता जब हम उनको पहचाने या समाज से उनकी पहचान कराने की कोशिश करते हैं। राष्ट्रपति के फिजिशयन रह चुके डॉ पीके सेठी आराम करने की उम्र में भी आराम करने को तैयार नहीं हैं। उनका देश के लिए समर्पण, उद्देश्य के लिए कुर्बानी, उनमें मिट्टी के लिए मर-मिट जाने का जज्बा सबकुछ कमाल का है। शायद यही वजह है कि उनकी वाट्सएप न्यूरोलॉजी भी कमाल की है। जन-जन से जुड़े रहने की सोच, मेडिकल को जनता से जोड़ने की उनकी कोशिश वाकई कमाल की है। है कमाल की बात।

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