Father of Traffic Shailesh Sinha : जिन्होंने दिल्ली को बनाया सुरक्षित
2018 में हुई थी 4,67,044 दुर्घटनाएं
मारे गये थे 1,51,417 लोग
घायलों की तादाद रही थी 4,69,418
हर घंटे सड़क पर होती हैं 17 मौत
हर घंटे घायल होते हैं 53 लोग
यानी सड़क दुर्घटना के शिकार होते हैं हर घंटे 70 लोग
लेकिन जानते हैं देश में सबसे ज्यादा सुरक्षित कौन सी जगह है? वह है देश की राजधानी दिल्ली। यहां 24 घंटे में 5 लोगों की सड़क दुर्घटना में मौत होती है। दिल्ली से सीख सकता है देश। मगर, दिल्ली को किसने सिखाया?
दिल्ली को सिखाने वाले का नाम है शैलेश…जी हां..शैलेश सिन्हा…ट्रैफिक गुरु, ट्रैफिक इन्वेन्टर, ट्रैफिक रिवोल्यूशन…आप चाहे इस शख्स को जो चाहे नाम दें…दिल्ली को ट्रैफिक अनुशासन सिखाने वाले शख्स यही हैं…
तारीफ में यह सावधानी भी जरूरी है कि शैलेश सिन्हा ने सिर्फ दिल्ली, देश के कई अन्य नामचीन शहरों में भी ट्रैफिक अनुशासन को बदला है। इनमें मुंबई, चेन्नई, हैदराबाद, कोलकाता, बेंगलुरू जैसे शहर भी शामिल हैं। लिहाजा एक ट्रैफिक गुरु के तौर पर शैलेश की कर्मभूमि का कैनवास सम्पूर्ण भारत है…देशभर में अब शैलेश के बताए गये ट्रैफिक के गुर अपनाए जा रहे हैं।
शैलेश को ट्रैफिक की दुनिया में लेकर आयी है खुद उनकी सोच। कोई क्रिकेटर सेंचुरी मार ले तो मन खुश हो जाता है मगर अपनी स्थिति पर क्या फर्क पड़ता है…नेता, उद्योगपति, कलाकार चाहे कुछ भी अच्छा करे या बोले, उससे हमारी अपनी स्थिति क्या बदल पाती है? शैलेश ने आम लोगों की ज़रूरतों को नये तरीके से सोचा। अगर दिल्ली करावल नगर से कनॉट प्लेस जाना हो, हरिनगर से एम्स पहुंचना हो, पटपड़गंज से सचिवालय जाने की जल्दी हो तो यह कैसे मुमकिन है…कहां ट्रैफिक जाम मिलेगा, कैसे इस जाम से बचकर वहां पहुंचा जाए जहां पहुंचना जरूरी है। शैलेश ने महसूस किया और महसूस कराया कि यह जानकारी क्रिकेट के स्कोर जानने से कहीं अधिक जरूरी है।
शैलेश ने ट्रैफिक न्यूज़ पर काम करना शुरू किया। एक प्रॉडक्ट डेवलप किया। ट्रैफिक पुलिस को जोड़ा। हर हिस्से से युवाओं को जोड़ा। सूचनाओं को इकट्ठा करने का सिस्टम बनाया। फिर उसे जन-जन तक पहुंचाने के लिए मास मीडिया का इस्तेमाल किया। एफएम के साथ अपने आइडिया को शेयर किया तो जल्द महसूस हुआ कि यह आइडिया न केवल सेलेबल था, बल्कि हर किसी के लिए उपयोगी और जरूरी था। पहले हर 15 मिनट पर दिल्ली के मुख्य सड़कों की अपडेट शुरू हुई..उसके बाद यह समय घटता चला गया। एफएम रेडियो पर ट्रैफिक जाम के अपडेट ने ज़िन्दगी में बदलाव आया…
शैलेश ने अपने अनुभवों के साथ द ट्रैफिक पीपुल्स. नेट नाम से वेबसाइट लांच कर पल-पल की अपडेट जनता को उपलब्ध करायी। फिर ट्रैफिक जाम से अपनी चिंता का दायरा बढ़ाते हुए सड़क पर दुर्घटनाओं की ओर ध्यान केंद्रित किया। सड़क पर सुरक्षा कैसे सुनिश्चित हो। ओवर स्पीड, ओवरटेक, दो गाड़ियों के बीच दूरी, ब्रेक जैसे रीएक्शन के लिए उचित समय जैसी चीजों पर दिन-रात शैलेश ने मेहनत की।
डिश टीवी के साथ देश का पहला ट्रैफिक न्यूज़ चैनल लाने का श्रेय भी शैलेश सिन्हा को जाता है। ट्रैफिक की बारीकियां सीखते हुए उसे समाज के साथ शेयर करते हुए, इसके लिए रेडियो, वेबसाइट, एप और टीवी जैसे संचार माध्यमों के जरिए नये-नये सिस्टम इजाद करते हुए शैलेश में अब कई नयी खूबियां पैदा हो चुकी थीं। अब वे स्टार्ट अप उद्यमी हो गये, आरजे तो थे ही, मीडिया प्रोफेशनल भी बन गये।
हां..एक महत्वपूर्ण पहलू तो छूट ही गया। शैलेश शानदार क्रिकेटर रहे हैं। दिल्ली की तरफ से उन्होंने आकाश चोपड़ा के साथ सलामी बल्लेबाजी भी की है। अंडर 16 और अंडर 19 में खूब खेले। मगर, देश के लिए क्रिकेट खेलने का सपना उनका अधूरा रह गया। मगर, इन अधूरे सपनों ने ही उन्हें सपनों का सौदागर भी बनाया।
जब ट्रैफिक गुरु शैलेश टीवी चैनलों पर चमकने लगे, लोग उनके योगदान को दांतों तले उंगली दबाकर देखने लगे तो आकर्षक व्यक्तित्व के धनी शैलेश को भोजपुरी फिल्म में हीरो बनने का अवसर भी मिला। ‘प्यार झुकता नहीं’ जैसी फिल्मों ने उन्हें एक नयी ऊंचाई दी। मनोज तिवारी, रवि किशन जैसे नामचीन कलाकारों के साथ शैलेश सिन्हा ने भी नाम कमाए।
शोहरत के नये पड़ाव पर शैलेश एक बार फिर क्रिकेट से जुड़े। मगर, इस बार सेलेब्रिटी क्रिकेट लीग यानी सीसीएल से उन्हें जुड़ने का अवसर मिला। खुद सलमान खान ने उन्हें अपनी टीम भोजपुरी दबंग्स के लिए चुना। कप्तान के रूप में मनोज तिवारी मिले जिनके साथ वे पहले ही ठुमके लगा चुके थे।
बहुमखी प्रतिभा की बात तो किताबों में पढ़ी और सुनी जाती है लेकिन शैलेश इस बहुमखी-चहुंमुखी प्रतिभा का जीता-जागता उदाहरण हैं। वे ट्रैफिक रूल बनाने सिखाने में ही नहीं सड़क पर सबसे तेज कार चलाने में भी चैंपियन हैं। नेशनल कार रेसिंग चैंपियनशिप शैलेश ने जीती है। 2007-08 का ऑटो क्रॉस नेशनल चैंपियन भी रह चुके हैं शैलेश सिन्हा।
स्कूल हो, कॉलेज हो, टीवी डिबेट हो या फिर दूसरे सामाजिक सरोकार के कार्यक्रम…हर जगह शैलेश सिन्हा की मांग है। अब वे मोटिवेटर भी हो चुके हैं। उपहार के तौर पर पौधे बांटने की जागरुकता फैलाते हुए एक दशक से ज्यादा वक्त उन्हें हो चुके। कहने का अर्थ ये है कि ज़िन्दगी को आसान कैसे बनायी जाए, रचनात्मक कैसे बनायी जाए, बेशकीमती कैसे बनायी जाए…अगर सीखना हो तो हमारे पास हैं शैलेश सर…कमाल के गुरु, कमाल के मोटिवेटर, कमाल के ट्रैफिक इनोवेटर…क्यों, आप नहीं कहेंगे कमाल है!