दिल्ली में कमाल की पहल : प्लास्टिक कूड़े के बदले रेस्टोरेंट में नाश्ता-खाना
गार्बेज कैफे….चौंकाती है शब्दों की ये युगलबंदी…गार्बेज… यानी कि कूड़ा और कैफे… यानी जलपान गृह…इसे रिफ्रेशमेंट कॉर्नर भी कह सकते हैं..साउथ डेल्ही म्युनिसिपल कॉरपोरेशन ने इस Tredny टर्म को पकड़ा है। इसका मूल मकसद स्वच्छता और पर्यावरण की रक्षा है। स्वच्छ भारत अभियान का यह हिस्सा है। मगर, इसे आर्थिक स्रोत के रूप में पेश कर इस मकसद को आम लोगों से जोड़ने की पहल वाकई सराहनीय है।
साउथ डेल्ही के म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन ने गार्बेज कैफे के रूप में अनोखी पहल की है। गार्बेज के साथ कैफे का यह रिश्ता कारोबार भी है और पर्यावरणप्रेम भी। देश की राजधानी में यह पहला प्रयोग है…और इसके नतीजे उत्साहजनक हैं। एसडीएमसी के चेयरमैन भूपिन्दर गुप्ता की मानें तो हर दिन 8 से 10 किलो प्लास्टिक गार्बेज कैफे से इकट्ठी की जा रही है।
द्वारका के सिटी सेंटर मॉल में शुरू हुए इस गार्बेज कैफे में आम लोग प्लास्टिक से लेकर दूसरी इस्तेमाल हो चुकी वस्तुएं लेकर पहुंचते हैं। बदले में कैफे नाश्ता या भोजन उपलब्ध कराता है। अगर आपने 250 ग्राम प्लास्टिक जमा कराया है तो आप नाश्ते के हकदार हैं। अगर प्लास्टिक का वजन एक किलो है तो आप पूरा भोजन कर सकते हैं।
गार्बेज कैफे स्वच्छ भारत मिशन को भी गति प्रदान करता है। क्लाइमेंट चेंज और ग्लोबल वार्मिंग को लेकर दुनिया भर में चल रही लड़ाई के बीच यह सोच एक उदाहरण पेश करता है। इससे कार्बन फुटप्रिंट घटाने में मदद मिलती है और पर्यावरण के लिए मानवीय प्रयासों का यह उदाहरण पेश करता है। पहले तो लोग यहां आने में शर्माया करते थे, मगर अब बड़े शौक से गार्बेज कैफे के मकसद से खुद को जोड़ने लगे हैं…
वैसे तो साउथ डेल्ही म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन ने पर्यावरण को ध्यान में रखकर कई प्रॉजेक्ट शुरू किए हैं मगर कूडे से पार्क तैयार करना और दुनिया के महत्वपूर्ण स्मारकों की अनुकृति बनाना भी महत्वपूर्ण है। मगर गार्बेज कूड़े की पहल ने तो कमाल कर दिखाया है। गार्बेज से अगर हम अपना ब्रेकफास्ट, लंच या डिनर सुनिश्चित कर रहे हैं तो वास्तव में यह कमाल की बात है। क्यों…है न कमाल की बात।