बस एक सोच से बनी रसोई गैस

चाय…चाय…चाय…. ये लीजिए चाय … पर इस चाय के साथ जुड़े हैं, कुछ रोचक सवाल-जवाब: न LPG न PNG, फिर ये रसोई गैस है क्या ? ये चुल्हा जल रहा है मीथेन गैस से। न ONGC न GAIL, फिर ये मीथेन गैस आयी कहाँ से ? ये मीथेन गैस आयी है एक इंजीनियरिंग कॉलेज से सटे इस नाले से। और इस नाले से रसोई गैस उपलब्ध हो पायी है, इस होनहार युवा अभिषेक वर्मा की सोच से।

अभिषेक वर्मा पेशे से इंजीनियर हैं। दिल्ली से सटे, साहिबाबाद स्थित इंद्रप्रस्थ इंजीनियरिंग कॉलेज से अपनी बी.टेक की पढ़ाई करते समय, कॉलेज के हॉस्टल की छत से दिखने वाला सूर्यनगर के नाले का नज़ारा ही, उनकी सोच की प्रेरणा बना। सबसे पहले अभिषेक ने इस नाले से निकलने वाली गैस का IIT Delhi में क्रोमोटॉग्रफी टेस्ट करवाया … ये जानने के लिए कि इस गैस की गुणवत्ता, क्या रसोई गैसे में इस्तेमाल लायक है?

फिर शुरु हुआ नाले से निकलती मीथेन गैस का रसोई गैंस के रूप में प्रयोग। 200-200 लीटर के 6 उल्टे ड्रम नाले में फिट किए गये। इन्ही ड्रमों में मिथेन गैस जमा हुआ। ड्रम को पाइप के जरिए गैस स्टोव तक जोड़ा गया। और बतौर रसोई गैस, इस मीथेन गैस का सबसे पहला इस्तेमाल किया, पास के ही एक चाय बनाने वाले ने।

ये बात 2013 की है। इस अनोखे प्रयोग की प्रदर्शनी भी लगायी गयी। इस चाय की चर्चा गली-मुहल्लों से होती हुई सोशल मीडिया और फिर मेन स्ट्रीम मीडिया तक पहुंच गयी। मगर, जल्द ही GDA, यानी ग़ाज़ियाबाद विकास प्राधिकरण की टीम ने समूचे जोश का बेड़ा गर्क कर दिया। पूरे प्रॉजेक्ट को ख़तरनाक बताते हुए, मिथेन गैस से बनने वाली चाय की इस व्यवस्था को हटवा दिया।

फिर 2014 में एक चाय वाला देश का प्रधानमंत्री बना। बतौर प्रधानमंत्री, नरेंद्र मोदी ने इस अनोखे रसोई गैस से चाय बनाने का ज़िक्र, अपने भाषणों में किया। बचपन में रेलवे स्टेशन पर चाय बेच चुके मोदी को, चाय बनाने की इस नायाब तकनीक ने बहुत प्रभावित किया। उसके बाद, एक बार फिर यह चाय की दुकान गुलजार हो गयी।

चाय की यह दुकान साहिबाबाद स्थित इंद्रप्रस्थ इंजीनियरिंग कॉलेज के सामने है। सूर्य नगर में यहीं से वह नाला निकल रहा है, जहाँ से उपलब्ध होता है अनोखा रसोई गैस। कड़कड़डूमा निवासी रामू सुबह 7 बजे साइकल पर निकल जाते हैं, चूल्हा और अन्य सामान लेकर, और लगाते हैं अपनी चाय की दुकान।

इस नायाब तकनीक वाले रसोई गैस पर जो भी खर्च है, वो बस इन ड्रमों को नाले में लगाने में। मीथेन गैस की उपलब्धता तो नाले से मुफ़्त में। अगर यह तकनीक चल पड़े तो ईंधन की बड़ी समस्या से निपटने में मदद मिलेगी। अब अभिषेक इस गैस का एक टेटरा पैक बनाने की तकनीक विकसित कर रहे हैं।

अभिषेक चाहते हैं कि इस तकनीक से प्रचार-प्रसार के लिए, नाले के किनारे जहां रामू चायवाला चाय बना रहे हैं और बेच रहे हैं, उस स्थान का सौन्दर्यीकरण किया जाए। ड्रम को रोकने के लिए जो लोहे का पिंजरा बना है, उसके ऊपर लोहे की प्लेट पर घास और पौधे उगाने की भी योजना है। यह पहल पर्यावरण के लिए भी अनुकूल है क्योंकि इस प्रक्रिया में ऑक्सीजन का भी निर्माण होता है।

नाले से सटे कॉलेज का प्रशासन-तंत्र भी, अब मीथेन गैस से बनने वाली इस चाय के प्रॉजेक्ट को बड़ा बनाने में रुचि दिखला रहा है। MSME, यानी लघु और छोटे उद्यमों के सरकारी विभाग की मदद से वर्कशॉप की योजना तैयार की जा रही है।

इस प्रॉजेक्ट में लगने वाली पूंजी से लेकर दूसरी सहूलियतें भी, कॉलेज प्रशासन की ओर से दी जाने की संभावना है। अभिषेक की इस पूरी सोच में कमाल है…चाय में स्वाद है…तो यहां रसोई गैस का भी सस्ता ईजाद है…अंधेरे में उजाले भी हो सकते हैं…यह कमाल भी कर दिखाती है अभिषेक वर्मा की सोच। भारतीय युवा, दुनिया में यूं ही अपनी प्रतिभा के लिए नहीं जाने जाते। ये वास्तव में कमाल हैं!

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *