Historical Toilet Museum । टॉयलेट म्यूज़ियम

Toilet Museum! A unique museum wrapping up the history and usage of toilets for past 5000 years & showing practical utilities of toilets, in ways other than the most obvious! Watch how a toilet seats looked like 100 or 500 or 5000 years ago! Also learn how toilets can help in cooking, lighting & keeping your house warm in winters, in addition to other utilities.

इतिहास शौचालय का

टॉयलेट म्यूज़ियम! क्या आपने कहीं सुना या देखा है? नहीं न! चलिए हम आपको आज इस अनूठे म्यूज़ियम की सैर कराते हैं, जहाँ पांच हज़ार साल पुराने टॉयलेट सीट से लेकर मॉडर्न टॉयलेट के कमोड तक आपको देखने को मिल जाएंगे। दिल्ली में स्थित Sulabh Intrnational Museum of Toilets में राजा महाराजाओं के समय के सिंहासन की तरह दिखने वाले टॉयलेट हों या हड़प्पां सभ्यता के दौरान मोहन जोदड़ो में इस्तेमाल होने वाले टॉयलेट सीट, सब तरह के प्राचीन शौचालय यहाँ देखने को मिल जाएंगे।

बदलते वक्त के साथ शौच के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले कमोड्स के डिजाइन भी बदलते गए और इन सबकी अपनी-अपनी दिलचस्प कहानी है। कभी ओहदे के हिसाब से दो मंज़िला शौचालय का इस्तेमाल होता था, तो कभी समय और जगह की बचत को देखते हुए अंग्रेज शिकार के दौरान टेबल टॉप टॉयलेट साथ ले जाया करते थे। टेबल टॉप टॉयलेट मल्टी-पर्पस कार्यों के लिए होते थे। जिस पर बैठ कर न सिर्फ शौच किया जा सकता था, बल्कि जरुरत पड़ने पर उस पर बैठ कर ब्रिटिश शिकारी भोजन भी किया करते थे।

इसी तरह और भी कई तरह के टॉयलेट सीट्स इस म्यूज़ियम में आपको देखने को मिलेंगे, जिनका इतिहास भी बड़ा रोचक है। मतलब ये कि टॉयलेट म्यूजियम को मामूली न समझिए। और न ही नाक मुंह सिकोड़िये। इस म्यूज़ियम को सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक बिंदेश्वरी पाठक ने बनवाया है, ज़ाहिर है इस म्यूज़ियम का संदेश स्वच्छता से भी जुड़ा है। और हां,मानव अवशिष्ट से निर्मित होने वाला बॉयो गैस प्लांट भी यहां आपको देखने को मिलेगा, जो बेहद ख़ास है। यहां उत्पन्न बायो गैस का इस्तेमाल ठीक वैसा ही होता है जैसा कि हम अपने घरों में रसोई गैस (LPG)का उपयोग करते हैं। मतलब खाना भी पकाया जाता है। इसी ऊर्जा से आप अपने घर को रौशन भी कर सकते हैं और सर्दी में गर्माहट भी महसूस कर सकते हैं। कमाल है!

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