Ravan Dahan I रावण दहन
Here is a man who creates Ravan but preaches Ram! Vinod Saarsar has been making Ravan effigies every year on Dushhera. The practice is going on for 40 years. It symbolises yearly victory of good over evil. Vinod is deeply sad that present day ‘Ravanas’ moving around in society. These ‘Ravanas’ are much more dangerous than the ten headed one. Ram had killed that Ravana at ages back! An inspirational and motivational message for country and the society.
रावण से सहानुभूति!
रावण से सहानुभूति! चौकिए मत! दिल्ली में पिछले चालीस सालों से रावण का पुतला बनाने का पुश्तैनी काम कर रहे हैं विनोद सारसर। वे कहते हैं, ‘’साहब अब तो रावण पर दया आती है, सहानुभूति आती है, अब रावण बनाने का मन नहीं करता।‘ विनोद की टीस है समाज और देश में रह रहे मानवता के दुश्मनों के खिलाफ। विनोद का तात्पर्य ये है कि त्रेता युग के रावण की तुलना में आज समाज में मौजूद मानवता के दुश्मन कहीं ज़्यादा ख़तरनाक हैं।
बहरहाल, दिल्ली समेत पूरे देश के कारीगरों के हाथों से बनने वाले रावण ने इन कारीगरों को जीने खाने का ज़रिया तो दिया ही है।रावण के इन पुतलों की मॉंग विदेशों तक भी है। दशहरा के दो महीने पहले से रावण का पुतला बनाने का सिलसिला शुरु होता है। अकेले दिल्ली में रावण के पुतले से जुड़ा कारोबार करीब दो करोड़ रूपयों का है। रावण का पुतला बनाने के इस व्यवसाय में घर की महिलाएं भी कारीगरों का साथ देती हैं। इस तरह रामयुग का रावण, आज इन कारीगरों के घरों में प्यार और एकजुटता को बनाए रखने में मददगार साबित होता है।
दशहरा में रावण-दहन के मौक़े पर ज़रा सोचिए – हम सब के भीतर ईर्ष्या, द्वेश, और अहंकार के रुप में, क्या आज भी रावण ज़िंदा नहीं है! अगर आपने अपने भीतर के, कई सिर वाले इस रावण को मार दिया तो आप ख़ुद कह उठेंगे – कमाल है!