President Medal Winner Artist । राष्ट्रपति पदक विजेता कुम्हार

Ever wondered why and how potters continue to be at work! It works despite their dwindling business due to the onslaught of so called modernity! Despite the polluting plastic toys, lamps, diyas etc. And, inspite of especially Chinese ones, edging out eco-friendly earthen diyas, toys etc from market!

Well, recognition from the President of India, helps! With festive season – Dussehra , Diwali etc – knocking at the door, have a glimpse of Potter Community or Kumhar colony in Delhi. You may see having their hands full of clay, busy making idols of Gods and Goddesses. This is in addition to both traditional and innovative pottery. This is a unique peep into the lives of potters or kumhars.

कुम्हार और पर्यावरण

मिट्टी से जुड़े एक इंसान को भी राष्ट्रपति भवन से बुलावा आ सकता है! मिट्टी के दिये, खिलौनो और कलाकृतियों से लेकर मूर्तियों तक को अपनी कला से जीवन्त करने वाले एक प्रतिभाशाली कुम्हार, प्रेम चंद्र को भी राष्ट्रपति पदक मिल सकता है!

ये कहानी दिल्ली के उत्तमनगर स्थित कुम्हार कॉलोनी की है, जहाँ वर्षों से कुम्हार अपनी पुश्तैनी काम को आगे बढ़ा रहे हैं। बाज़ारीकरण और मशीनीकरण के दुष्प्रभाव ने कई बार इन्हें इनकी मिट्टी से जुड़े कारोबार को खत्म करने की कोशिश की; लेकिन इन्होंने हार नहीं मानी और अपने काम को करते गए। चाइनीज़ मूर्तियाँ, दिये और खिलौनों ने इनकी बेहतरीन कारीगरी पर खूब चोट किए। दिन प्रतिदिन इनके ग्राहकों की संख्या घटती गई, खाने के लाले पड़ने लगे लेकिन इन्होंने भी ठान ली कि हार नहीं मानेंगे। अपने पवित्र और पुश्तैनी काम को नहीं छोडेंगे! एक दिन इनके काम की चर्चा सत्ता में बैठे लोगों तक ज़रुर होगी, चाहे वक्त क्यों न लगे। ऐसा ही हुआ और प्रेम चन्द्र कुम्हार को राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। कुम्हारों का हौसला बढ़ा, चाक तेज़ी से चलने लगे।

फैब्रिक से बने सामान और उस पर केमिकल  युक्त रंगरोगन के चमक-दमक के आगे, शुद्ध मिट्टी से बने सामान और प्राकृतिक रंगों से सजे खिलौने, दिये और मूर्तियों से लोग दूर भागने लगे। लेकिन अब लोगों को भी समझ आने लगा है कि पर्यावरण और शुद्धता के नज़रिए से मिट्टी के बने सामान ही सर्वोत्तम हैं, और इस लिहाज़ से कुम्हारों का काम भी सराहनीय है। मिट्टी और कुम्हारों का रिश्ता कभी नहीं टूटा। दिल्ली की महानगर और चकाचौंध भरी ज़िन्दगी में उजाले के लिए पर्व त्यौहारों में, अब इनके बनाए दिये फिर खरीदे जाने लगे हैं। इनके हाथ की बनी मिट्टी की मूर्तियाँ लोगों को अच्छे लगने लगे हैं। गणपति हों, लक्ष्मी जी या फिर माँ दुर्गा की मूर्तियाँ, कुम्हारों के हाथों सब चमक उठती हैं। उत्तमनगर के कुम्हार कॉलोनी के बाशिन्दों ने तमाम झंझावतों और विपरीत परिस्थितियों के बीच भी अपने अस्तित्व और पेशे को बचाए रखने में कामयाबी हासिल की है। चाक और मिट्टी के रिश्ते को और पुख़्ता किया है। राष्ट्रपति भवन के गलियारों तक अपनी छाप छोडने में ये कामयाब हुए हैं। ये वकाई कमाल है!

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